“सहकार से समृद्धि’ के संकल्प से करोड़ों लोगों को लाभान्वित कर रही मोदी सरकार: अनुराग ठाकुर

हिमाचल में आर्थिक आपातकाल, अब कांग्रेसी नेता भी मानने रहे कि उनकी कथनी और करनी में है फ़र्क़

“सहकार से समृद्धि’ के संकल्प से करोड़ों लोगों को लाभान्वित कर रही मोदी सरकार: अनुराग ठाकुर

पूर्व केंद्रीय मंत्री व हमीरपुर लोकसभा से सांसद अनुराग सिंह ठाकुर ने हमीरपुर में दी हमीरपुर ज़िला सहकारी विकास संघ समिति द्वारा आयोजित 71 वें अखिल भारतीय सहकारी सप्ताह के ज़िला स्तरीय समारोह के अवसर पर बतौर मुख्यअतिथि उपस्थित रह कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया व आज के परिवेश के सहकारिता की महत्ता पर प्रकाश डाला। 

 अनुराग सिंह ठाकुर ने कहा”निजी उद्योग और व्यापार ने देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन सहकारिता का योगदान देश के विकास में अतुलनीय है। वर्तमान में केंद्र की मोदी सरकार ने बिखरी हुई सहकारी संस्थाओं को न केवल व्यवस्थित किया है, बल्कि समान कानून बनाने के साथ उन्हें टैक्स में भी छूट दी है। साथ ही, इन्हें कम्प्यूटरीकरण, डिजिटल माध्यमों और नई तकनीकों से लैस कर सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में सहकारिता क्षेत्र की अधिक से अधिक हिस्सेदारी हो। वैसे तो  भारत में सहकारिता का गौरवशाली इतिहास रहा है, लेकिन कुप्रबंधन, संकट के समय पर्याप्त सरकारी समर्थन की कमी और आवश्यक सुधारों की अनुपस्थिति के कारण इसका विकास बाधित रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपने दूसरे कार्यकाल में 6 जुलाई 2021 को एक नए सहकारिता मंत्रालय की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य सहकारी क्षेत्र के विकास को नए सिरे से प्रोत्साहन प्रदान करना है। और मोदी सरकार “ सहकार से समृद्धि’ के संकल्प से करोड़ों लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए कृतसंकल्पित है”

अनुराग सिंह ठाकुर ने कहा “ वर्ष 2024 में सहकारिता मंत्रालय जमीनी स्तर पर नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करके इस क्षेत्र को मजबूत करने का संकल्प लिया है। मोदी सरकार द्वारक पिछले कार्यकाल में नीतिगत ढांचा बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था और वर्तमान कार्यकाल में उनकी प्राथमिकता इन नीतियों को जमीनी स्तर तक ले जाने ले जाने की है। अभी देश में 93,000 पीएसी के साथ 20 प्रमुख राज्यों के 739 जिलों में 8.54 लाख से अधिक सहकारी समितियां हैं, जिनसे 30 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं। 2 लाख दुग्ध समितियां हैं। इनमें से इफको, अमूल, कृभको जैसी समितियां हैं, जो विश्व प्रसिद्ध हैं। वहीं, 12 सहकारी बैंक भी विश्व की शीर्ष 300 सहकारी समितियों में शामिल हैं। देशभर में 1502 सहकारी बैंक हैं, जिनकी 11,000 शाखाएं हैं।प्रधानमंत्री मोदी जी के ‘सहकार से समृद्धि’ के विजन के अनुरूप, मंत्रालय इस वर्ष के अंत तक या जनवरी 2025 तक देश में सभी PACS के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया पूरी कर लेगा। 2 लाख नए बहुउद्देश्यीय PACS बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।सहकारिता मंत्रालय ने सहकारी समितियों को सशक्त बनाने के लिए 60 से अधिक कदम उठाए हैं। ये पहल पैक्स(प्राथमिक कृषि ऋण समितियां) से एपेक्स को मजबूती प्रदान करने, सहकारी समितियों में सहकारिता के लिए, सहकारी समितियों के लिए आयकर कानून में बदलाव, सहकारी बैंकों के व्यवसाय में आ रही कठिनाइयों को दूर करने तथा सहकारी चीनी मिलों के सशक्तिकरण के लिए की गई हैं”

अनुराग सिंह ठाकुर ने कहा “ आज यदि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, तो इस सफलता में सहकारी समूहों का महत्वपूर्ण योगदान है। केवल दूध ही नहीं, सहकारी संस्थाएं उर्वरक, कपास, हैंडलूम, हाउसिंग, खाद्य तेल और चीनी जैसे क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। अमूल और लिज्जत पापड़ जैसे घर-घर में जाने जाने वाले ब्रांड सहकारिता की ही देन हैं। शहरी और ग्रामीण सहकारी बैंकों से लेकर इफको और कृभको जैसी अनेक सहकारी संस्थाएं लोक जीवन का अहम हिस्सा बनकर उभरी हैं। ग्रामीण इलाकों में तो कृषि ऋण उपलब्ध कराने के मामले में सहकारी बैंकों ने उस तबके तक अपनी पहुंच स्थापित की है जो अर्थव्यवस्था के अंतिम पायदान पर खड़े हैं। दूध और चीनी ही नहीं शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ ही विनिर्माण गतिविधियों में भी सहकारी समितियों पर हमारी निर्भरता बढ़ी है। सहकारिता के उजाले को देख यह कहना न्यासगंत होगा कि सहकारी गतिविधियां आर्थिक और सामाजिक समरसता की स्थापना का मजबूत आधार हैं। जाति, क्षेत्र और वर्ग आधारित अंतर को पाटने में सहकारी समितियों ने अभूतपूर्व उपलब्धियां अर्जित की है”

अनुराग सिंह ठाकुर ने कहा “ अब तो कांग्रेसी नेता भी मानने लगे हैं कि उनकी कथनी और करनी में फ़र्क़ है। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने राहुल गांधी जी और कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर बिना बजटीय प्रावधान के खोखले वादे करने पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया है। कांग्रेस सरकार कुशासन, वादाख़िलाफ़ी, आर्थिक कुप्रबंधन व अजीबोग़रीब फ़ैसलों का पर्याय बन चुकी है और इसकी के चलते आज हिमाचल आर्थिक आपातकाल की मार झेल रहा है। हिमाचल में कांग्रेस सरकार आर्थिक कुप्रबंधन के चलते आज प्रदेश 96 हज़ार करोड़ से ज़्यादा के कर्ज़े में डूब गया है। प्रदेश पर महंगाई का बोझ, इंडस्ट्री के साथ बेरुख़ी, कर्मचारियों को सैलरी-पेंशन के लिए तरसाना दिखाता है कि कांग्रेस से सरकार चलाई नहीं जा रही। कांग्रेस का हाथ प्रदेश की जनता के गिरेबान पर है। बिजली के दाम इन्होंने आते ही दो बार बढ़ा दिए,  पर्यावरण और दूध का सेस लगा दिया, उद्योगों पर भी सेस बढ़ाया गया है जिस से राज्य में उद्योग पलायन कर रहे हैं। कांग्रेस ने चुनावों से पहले बड़े बड़े वादे किए मगर चुनाव के बाद वादे पूरे करना तो दूर प्रदेश की माली हालत इतनी ख़राब कर दी कि यहाँ वेतन और पेंशन के लाले पड़ गये हैं”