हिमाचल के भोरंज में लकवे का पारंपरिक देसी तरीके से होता है इलाज, बकरी के मल का इस्तेमाल

हिमाचल के भोरंज में लकवे का पारंपरिक देसी तरीके से होता है इलाज, बकरी के मल का इस्तेमाल

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिला के भोरंज क्षेत्र में बीईएमएस डॉक्टर पारंपरिक तरीके से पैरालिसिस मरीजों का इलाज कर रहे हैं। डॉक्टर पारंपरिक देसी तरीके से बकरी के मल से तैयार लेप से कई मरीजों को ठीक करने का ठीक कर चुके हैं। मरीज के जिन हिस्सों में पैरालिसिस अटैक के कारण प्रभाव होता है उन पर लेप लगाकर तथा मालिश से मरीजों को ठीक किया जा रहा है। डॉक्टर सोनी कुमार वैद्य का तो यह दावा है कि वह पैरालिसिस के उन तमाम मरीजों को ठीक कर सकते हैं जो कोमा में नहीं है। डॉक्टर सोनी कुमार के इन दावों को उनके मरीज भी सही साबित कर रहे हैं जो इलाज के इस पद्धति से बीमारी से रिकवर हो रहे हैं। देश के कई राज्यों से मरीज उनके निजी क्लीनिक में उपचार के लिए भोरंज के कैहरवीं में पहुचते हैं। डॉक्टर सोनी कुमार वैद्य कहते हैं कि बकरी के मल ( स्थानीय भाषा में मिंगन ) और चिकनी मिट्टी के लेप लगाने मात्र से लकवे के मरीजों के उन अंगों को हरकत में लाया जा सकता है जिन्हे हिलाने में मरीजों दिक्कत आ रही हो। उनका कहना है कि घर में रहकर मरीज खुद भी चिकनी मिट्टी और बकरी के मल का इस्तेमाल कर इस उपचार को कर सकते हैं हालांकि इसमें दो से तीन औषधि और मिलाई जाती हैं लेकिन महज इस लेप मात्र से ही लकवे के मरीजों को काफी राहत मिलती है। 

महज 1500 रुपए में 1 से 2 महीने में रिकवर हो जाते हैं मरीज
डॉक्टर सोनी कुमार वैद्य का कहना है कि महज 1500 रुपए की लागत की औषधि से 1 महीने तक मरीज का उपचार किया जा सकता है। कई दफा मरीज उनके पास नहीं पहुंच पाते हैं तो वहां डाक के माध्यम से भी दवाई भेजते हैं। मरीज यदि उन्हें बुलाते हैं तो वह घर पर जाकर भी देश के कई हिस्सों में मरीजों का उपचार कर चुके हैं उनका कहना है कि यदि कोई मरीज भोरंज में आकर उपचार करवाना चाहता है तो उसे रहने और खाने का अपना खर्च करना पड़ता है लेकिन अन्य इलाज का खर्च महज 1500 है। यदि कोई मरीज इतना खर्च करने में भी सक्षम नहीं है तो वहां सिर्फ चिकनी मिट्टी और बकरी के मल का लेप लगाकर खुद को लकवा की बीमारी से ठीक कर सकता है। 

लखनऊ के रहने वाले ए नियाजी खान का कहना है कि साढ़े 3 साल पहले मुंबई में रहते हुए उनको पैरालिसिस का अटैक आया था। बीमार होने पर वह मुंबई से लखनऊ लौट आए और कई जगह पर उन्होंने उपचार करवाने का प्रयास किया। वह बिस्तर से उठ भी नहीं पाते थे और चलने में भी दिक्कत आती थी लेकिन यहां पर उपचार करने के बाद अब चलना फिरना शुरु कर दिया है। उन्होंने कहा कि 15 दिन के उपचार में उनकी बीमारी का 40 से 45 प्रतिशत सुधार हो चुका है। 


बीकानेर निवासी मरीज शाकुंतला देवी के तीमारदार कमलजीत का कहना है कि उनके मरीज को 6 साल से पैरालिसिस के कारण बिस्तर पर रहना पड़ रहा है पिछले कुछ दिनों से वह डॉक्टर सोनी कुमार के उपचार करवा रहे हैं और काफी अंतर देखने को मिला है। लेप और मालिश से ही मरीज में 40 प्रतिशत सुधार देखने को मिला है। 

डॉक्टर सोनी कुमार वैद्य  का कहना है कि उनके पिता और दादा भी पारंपरिक तरीके से उपचार करते थे बीईएमएस का फुल फॉर्म हिंदी में बैचलर ऑफ इलेक्ट्रो-होम्योपैथी एवं चिकित्सा और योग विज्ञान में डिप्लोमा भी किया। उन्होंने कहा कि वह पैरालिसिस के साथ बवासीर का भी इलाज करते हैं। पैरालिसिस का इलाज महज बकरी के मल के लेप और कुछ औषधियों को मिलाकर संभव है उन्होंने कहा यह बेहद ही सस्ता इलाज है और जो मरीज भारी-भरकम खर्च नहीं उठा सकते हैं उनके लिए यह बड़ा फायदेमंद है यदि कोई डॉक्टर के पास जाकर उपचार नहीं करवा सकता है तो वह घर में रहकर ही आसानी से उपलब्ध होने वाले बकरी के मल और चिकनी मिट्टी के लिए से अपना उपचार कर सकता है।