हमीरपुर में गोल्डन चांस से भी पास नहीं हुई कांग्रेस पार्टी

मुख्यमंत्री का तिलस्म भी टूटा, कांग्रेसियों की खुनस भी जगजाहिर हुई। सत्ता के शानदार औहदों से नवाजे गऐ जिन लोगों से मुख्यमंत्री आस लगाऐ बैठे हैं उन्होंने ही इन चुनावों में पार्टी या पार्टी के उम्मीदवार के साथ ठीक नहीं किया और पहले बड़सर और फिर हमीरपुर में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। हैरानी की बात यह है कि बड़सर की हार से भी कांग्रेस नेतृत्व ने सबक नहीं सीखा और हमीरपुर में चल रहे भीतरधात को अनदेखा किया।

हमीरपुर में गोल्डन चांस से भी पास नहीं हुई कांग्रेस पार्टी

हमीरपुर । 15 जुलाई

हाल ही के विधानसभा उपचुनाव में हमीरपुर जिला की दो विधानसभा सीटों पर कांग्रेस पार्टी की हार ने साबित कर दिया है कि प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार होने के बावजूद मुख्यमंत्री के जिला में कांग्रेस पार्टी लगातार रसातल की ओर जा रही है। मुख्यमंत्राी सुख्विंद्र सिंह सुक्खु बेशक जिला में विकास की बयार बहाने के दावे करते रहें लेकिन हकीकत यह है कि उनके सिपाहसलार ही जिला में उनकी छवि और कांग्रेस पार्टी की लुटिया डुबाने में लगे हैं। कांगे्रस पार्टी के पास यह गोल्डन चांस 20 साल के बाद आया था जिसे विरोधियों ने अपनी अपनी खुनस निकालने के चलते गंवा दिया। हमीरपुर विधानसभा क्षेत्रा में पिछले 52 वर्षोे में कांग्रेस पार्टी केवल तीन बार ही चुनाव जीत पाई है।

सत्ता के शानदार औहदों से नवाजे गऐ जिन लोगों से मुख्यमंत्री आस लगाऐ बैठे हैं उन्होंने ही इन चुनावों में पार्टी या पार्टी के उम्मीदवार के साथ ठीक नहीं किया और पहले बड़सर और फिर हमीरपुर में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। हैरानी की बात यह है कि बड़सर की हार से भी कांग्रेस नेतृत्व ने सबक नहीं सीखा और हमीरपुर में चल रहे भीतरधात को अनदेखा किया।

यहां भाजपा प्रत्याशी आशीष शर्मा की रणनीति को दाद देनी होगी की उन्होने सरकार में बैठी कांग्रेस पार्टी के प्रत्यशी पुष्पिंद्र वर्मा को हर पोलिंग बूथ घेरते दिखे। भाजपा के शीर्ष नेता जहां भी अपने कार्यकर्ता को सुस्त या संदिग्ध देखते थे वहां तुरंत कार्रवाई कर रहे थे जबकि कांग्रेस के नेता इस गलतफहमी का शिकार रहे कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और यह मुख्यमंत्री का जिला है। इसी सोच के कारण ना तो संगठन ने काम का गंभीरता से लिया और ना हीे नेताओं ने। भाजपा के लिए हमीरपुर सीट जीतना इस बार आसान नहीं था क्यांेकि भाजपा के खेमे में भी बगावत साफ दिख रही थी लेकिन भाजपा प्रत्याशी आशीष शर्मा ने जिस तरह प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व को सचेत रखा वही उनकी जीत का कारण बना।

राजेश धर्मानी तकनीकी शिक्षा मंत्राी हमीरपुर में चुनाव के प्रभारी थे लेकिन उनके सभी प्रयासांे के बावजूद संगठन में नाराज़ चल रहे लोग पार्टी के काम से कन्नी काटते रहे। हैरानी की बात यह है कि इन लोगों ने मुख्यमंत्री तक की परवाह नहीं की और पार्टी के काम से किनारा किए रखा। महत्वपूर्ण पहलू यह भी देखने में आया कि कांग्रेस पार्टी के प्रचार में उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने आते ही जान फूंक दी थी लेकिन अचानक उनके कार्यक्रमों में बदलाव कर दिया गया और उन्हें नालागढ़ जाना पड़ा, जिससे चुनाव प्रचार कमजोर पड़ा। बेशक उसी शाम मुख्यमंत्री हमीरपुर प्रचार के लिए आए लेकिन देर रात 10 बजे के करीब टाउनहाल में उन्हे सुनने कितने लोग आऐ यह कांगे्रस जन बाखूबी जानते हैं।

यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस के नेता जिन्हे यह डर था कि कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत से अगले विधानसभा चुनाव में उनको टिकट मिलने की संभावना खत्म हो जाएगी, ने इस चुनाव में कांग्रेस का साथ नहीं दिया। मजेदार बात यह है कि इन में से अधिकतर पहले ही सत्ता सुख भोग रहे हैं और कई संगठन के पदों पर बैठ कर हेकड़ी बघार रहे हैं।

अब कांग्रेस पार्टी आत्ममंथन का ड्रामा करेगी और यही लोग हार का ठीकरा एक दूसरे पर फोडं़ेगे । इतना ही नहीं यह खुद को कांग्रेस पार्टी का सबसे ज़यादा निष्ठवान होने का दावा भी करेंगंे। लेकिन हकीकत यह है कि सरकारी कुर्सीयों की मलाई खा रहे यह लोग पार्टी और जिले मुख्यमंत्राी के भी वफादार नहीं लगते। वक्त रहते यदि कांग्रेस पार्टी ने जिला में पुख्ता कदम ना उठए तो इस बार हुई 1571 वोट की हार तीन साल बाद 15 हजार का आंकड़ा भी पार कर सकती है। यहां यह बात भी जगजाहिर है कि जो कांग्रेसी नेता इस बार पुष्पिंद्र वर्मा की मुखलफत कर रहे थे उनमें से यदि किसी एक को कांग्रेस का टिकट दिया गया तो वह अपनी जमानत बचाने में भी कामयाब नहीं हो सकेंगे।