हिमाचल प्रदेश व्हीलचेयर क्रिकेट टीम का संघर्ष: जब खिलाड़ी ही खुद अपने कंधों पर उठा रहे हैं अपनी टीम का बोझ, सरकार कब देगी साथ?
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हिमाचल प्रदेश व्हीलचेयर क्रिकेट टीम ने ग्वालियर में आयोजित 4वीं नेशनल व्हीलचेयर क्रिकेट चैंपियनशिप 2025 में भाग लिया और अपनी क्षमता से कहीं अधिक संघर्ष करते हुए शानदार मुकाबले खेले। हालांकि टीम टूर्नामेंट की दौड़ से बाहर हो गई, लेकिन खिलाड़ियों ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मैदान पर पूरी शिद्दत के साथ संघर्ष किया।
हिमाचल प्रदेश, जो अपने ऊँचे पहाड़ों और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के लिए जाना जाता है, वहां दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए खेल में आगे बढ़ना किसी युद्ध से कम नहीं है। दुर्भाग्यवश, इस राज्य की व्हीलचेयर क्रिकेट टीम को न तो सरकार की ओर से कोई आर्थिक सहायता मिलती है और न ही आवश्यक संसाधन। इसके बावजूद खिलाड़ी बिना किसी शिकायत के अपने दम पर खेल सामग्री खरीदते हैं और प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए अपने खर्चे पर यात्रा करते हैं।
खिलाड़ियों का संघर्ष और जमीनी हकीकत
टीम के संयोजक राजन ने बताया कि टीम के सभी खिलाड़ी सीमित संसाधनों के बावजूद पूरे दिल से खेलते हैं। "हमारा सपना है कि हम हिमाचल प्रदेश का नाम ऊँचा करें, लेकिन जब सरकार और प्रशासन की ओर से कोई सहायता नहीं मिलती, तो यह सपना हर बार अधूरा सा लगने लगता है। राजन बताते हैं, "हम अपने घरों में बैठे नहीं हैं। हम मैदान पर हैं। हम हिमाचल प्रदेश का नाम रोशन करना चाहते हैं, लेकिन बिना संसाधनों के हमारी राह में सिर्फ मुश्किलें ही मुश्किलें हैं।" यह खिलाड़ियों का दर्द है, जो हर दिव्यांग खिलाड़ी की हकीकत भी है। जब एक दिव्यांग खिलाड़ी व्हीलचेयर पर बैठकर बल्ला घुमाता है, तो वह सिर्फ एक गेंद को नहीं मारता—वह हर उस नकारात्मक सोच को तोड़ता है, जो उसे कमजोर समझती है।
इस बार हिमाचल प्रदेश व्हीलचेयर क्रिकेट टीम टूर्नामेंट में आगे नहीं बढ़ सकी, लेकिन उनका हौसला और जज़्बा कभी नहीं हारेगा। सवाल यह है कि क्या सरकार और समाज इनकी मेहनत को पहचानेगा? क्या समय आएगा जब ये खिलाड़ी भी गर्व से कह सकें, "हमें भी सरकार और समाज से समर्थन मिला, और हमने दुनिया को दिखा दिया कि हम किसी से कम नहीं।